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बिहारी-सतसई
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सफाई देने पर भी आपकी यह कुचाल नहीं छिर सकती। हे लाल, (आपकी) यह बेहयाई की हँसी (मुझे) विष के समान बुरी लगती है।

जिहिं भामिनि भूषनु रच्यौ चरन-महाउर भाल।
उहीं मनौ अँखियाँ रँगीं ओठनु कै रँग लाल॥४२२॥

अन्वय—जिहिं भामिनि चरन-महाउर भाल भूषनु रच्यौ, लाल मनौ उहीं ओठनु कै रँग अँखियाँ रँगीं।

जिहिं = जिसने। भामिनि = स्त्री। भाल = मस्तक। मनौ = मानो।

जिस स्त्री ने (अपने) पैरों के महावर से (तुम्हारे) मस्तक में भूषण रचा है—तुम्हारे मस्तक को भूषित किया है—हे लाल! मानो उसीने अपने ओठों के (लाल) रंग में तुम्हारी आँखें भी रँग दी हैं। (जिस मानिनी स्त्री के पैरों पड़कर तुमने मनाया है, उसीने रात-भर जगा-जगाकर तुम्हारी आँखें लाल-लाल कर दी हैं।)

नोट—"ओठनु के रँग अँखियाँ रँगीं" में हृदय-संवेद्य सरसता है।

चितवनि रूखे दृगनु की हाँसो बिनु मुसकानि।
मानु जनायौ मानिनी जानि लियौ पिय जानि॥४२३॥

अन्वय—रूखे दृगनु की चितवनि, बिनु हाँसी मुसकानि, मानिनी मानु जनायौ, जानि पिय जानि लियौ।

रूखे = प्रेमरसहीन। दृगनु = आँखें। जानि = ज्ञान, प्रवीण।

रूखी आँखों की चितवन और बिना हँसी की मुस्कुराहट से मानिनी ने अपना मान जताया और प्रवीण प्रीतम ने जान लिया—इन लक्षणों को देखकर नायिका का मान परख लिया।

बिलखी लखै खरी-खरी भरी अनख बैराग।
मृगनैनी सैन न भजै लखि बेनी के दाग॥४२४॥

अन्वय-मृगनैनी अनख बैराग भरी खरी-खरी बिलखी लखै, बेनी के दाग लखि सैन न भजै। बिलखी = व्याकुलता से । अ क्रोध । बैराग = उदासीनता । सैन न भजै = शयन नहीं करती, शय्या पर नहीं जाती।