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सटीक : बेनीपुरी
 

देखो, नटखटपन और क्रोध छोड़कर संसार की युवतियाँ अपने प्रीतमों के संग रँगरलियाँ (विहार) करती हैं। और तो और, यह बात भी छिपी नहीं है कि इस वर्षा-ऋतु में बूढ़ियों (बीरबहूटियों) में भी रंग आ जाता है—उमंग उमड़ आती है। (फिर युवतियों का क्या पूछना ?)

धुरवा होहि न अलि इहै धुआँ धरनि चहुँकोद।
जारतु आवत जगतु कौं पावस-प्रथम-पयोद॥५७२॥

अन्वय—पावस-प्रथम-पयोद जगतु कौं जारतु आवत, अलि इहै धुआँ धरनि चहुँकोद, धुरवा न होहि।

धुरखा=मेष। अलि=सखी। घरनि=पृथ्वी। चहुँकोद=चारों ओर। पावस-प्रथम-पयोद=वर्षा ऋतु के पहले दिन का बादल।

वर्षा-ऋतु के पहले दिन का बादल संसार को जलाता हुआ चला आता है। हे सखी, यह उसीका (संसार के जलने का) धुआँ पृथ्वी के चारों ओर (दीख पड़ता है), यह मेघ हो नहीं सकता।

हठु न हठीली करि सकैं यह पावम ऋतु पाइ।
आन गाँठि घुटि जाति ज्यौं मान गाँठि छुटि जाइ॥५७३॥

अन्वय—यह पावस-ऋतु पाइ हठीली हठु न करि सकैं, आन गाँठि ज्यौं घुटि जाति मान-गाँठि छुटि जाइ।

आन=दूमरा। गाँठि=गिरह। घुटि जाति=कड़ी पड़ जाती है।

इस पावस-ऋतु को पाकर—इस वर्षा के जमाने में—हठीली नायिका भी हठ नहीं कर सकती, (क्योंकि इस ऋतु में) अन्य गाँठें जिस प्रकार कड़ी पड़ जाती हैं, (उसी प्रकार) मान की गाँठ ( आप-से-आप) खुल जाती है।

नोट—बरसात में सन, मूँज आदि को रस्सियों की गाँठें कड़ी पड़ जाती हैं, पर मेघ उमड़ने और बिजली कौंधने पर मान की गाँठ टूट ही जाती है।

वेऊ चिरजीवी अमर निधरक फिरौ कहाइ।
छिन बिछुरैं जिनको नहीं पावस आउ सिराइ॥५७४॥

अन्वय—वऊ निधरक चिरजीवी अमर कहाइ फिरौ जिनकी आउ पावस छिन बिछुरैं नहीं सिराइ।