बिहारीवहार।
- नाहिँ नहीं नाहीं ककै नारि निहोरे लेय ।
छुअत ओठ बिच आँगुरिन बिरी बदन प्यौ देय ॥ २४७ ।। विरी वदन प्यौ देय बाम वाह गर दीने । दृच्छिन कर छै चिबुक सरस रस-बरसा कीने ॥ परसहरस लहि परबस है गई नारि नवीना । सुकवि चहत तऊ मुरि मुरि भाषत नाहि नहीं ना ॥ २६६ ॥ . :. . गदराने तन गोरटी ऐपन आड़ लिलार ।। | हिट्यो दै अठिलाय दृग करै आँवारि सु मार ॥ २४८ ॥ करै अँवारि सु मार मार की अगि ज़गावति । कबहुँक ढाँपति वदन कबहुँ सारी सरकावति ॥ हँसति ठठाइ डटाइ नैन अँग लसत सुहाने । ऍठि :
- ऍठि कै चलति सुकबि तिय तन गदराने ॥ ३०० ॥ . .
जाति मरी विठुरत घरी जलसफरी की रीति । छन छन होति खरी खरी अरी जरी यह प्रीति ॥२४९॥ | अरी जरी यह प्रीत भरी दुख सौं नित बाढति । सुख को लेसन देति । करेजो सो-जनु काढ़ति ॥ केहूँ होत न धीर हि साँ फाटत छाती । सूखि गई दोऊ दीठि सुकवि जउ भरि भरि जाती ॥ ३०१ ।। +हैजसुधादीधितकला वह लखि दीठि लंगाय । मनौ अकास अगस्तिया एकै कली लखाय ॥ २५० ॥ एकै कली लखाय लखत हियरो हरसावत । अनगिन तारे जुही जूह जनु | ॐ यह दोहा कृष्णदत्तकवि के ग्रन्थ में नहीं है । क के = कैकै । दो १६ में भी ऐसाही है' संस्कृत
- टीका से” नाकमोरि नाही क कै’’ पाठ है ।।
- कटि पर हाथ लगाकर । है यह दोहा कृष्णदत्त कवि के ग्रन्य में नही है ॥ + यह दोहा अनवर
चन्द्रिका में नहीं है।