पेड़न पै फहरात केतु नाना रँगवारे।
भयो रुचिर शृंगार मंदिरन में है सारे।
सूर्य आदि देवन की प्रतिमा गईँ सँवारी।
अमरावति सी होय रही नगरी सो सारी।
घोषक डौंड़ी पीटि कह्यो चारौ दिशि टेरी
"सुनौ सकल पुरवासी! यह आज्ञा नृप केरी-
आज अमंगल दृश्य न कोऊ सम्मुख आवैं;
अंध, पंगु, कृश, जराजीर्ण ना निकसन पावैं।
दाह हेतु शव कोउ न काढ़े निशि लौ बाहर।
है निदेश यह महाराज को, सुनै सकल नर ।"
गृह सँवारे सकल, शोभा नगर बीच अपार।
बैठि चित्रित चारु रथ पै कढ़यो राजकुमार।
चपल धवल तुरंग की जोड़ी नधी दरसाय।
रह्यो मंडप झलकि रथ को प्रखर रविकर पाय।
बनै देखत ही सकल पुरजनन को उल्लास,
करें अभिवादन कुँवर को आय ते जब पास।
भयो प्रमुदित कुँवर लखि सो नरसमूह अपार।
हँसत यों सब लोग जीवन है मनौ सुखसार।
कुँवर बोल्यो "मोहिँ चाहत लोग सबै लखात
होत जीव सुशील ये जो नृप कहे नहिँ जात।
पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/११६
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५३)
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/f8/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4.djvu/page116-1024px-%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A4.djvu.jpg)