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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१४४

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सोयबे के प्रथम पिरोवति रही है कोउ
कंठहार हेतु मोती मानिक औ मरकत।
सूट में पिरोए रहे अरुझि कलाई बीच
रंग रंग को प्रकाश तिनसों है झलकत।

उपवन भेटती नदी को कल नाद सुनि
सोई सब विमल बिछावन पै पास पास।
मूँदि दल नलिनी अनेक रहीं जोहि मनो
भानु को प्रकाश, जाहि पाय होत है विकास।
कोठरी कुमार की लखाति जाके द्वार बीच
दमकि सुरंगपट रहे पाय कै उजास।
ताके दोऊ ओर गंगा गौतमी सलोनी सोईँ
रसधाम बीच जो प्रधान ह्वै करैं निवास।

लगे द्वार पै चंदन के हैं चित्रित चौखट;
कनककलित बहु परे मनोहर अरुण नील पट।
चढ़ि के सीढ़ी तीन परत है जिनके भीतर
अति विचित्र आवास कुँवर को परम मनोहर;
रेशम की गुलगुली सेज जहँ सजी सुनिर्मल
लगति कमलदल सरिस अंग तर जो अति कोमल।
भीतिन पै हैं मोतिन की पटरी बैठाई,
सिंहल की सीपिन सों जो हैं गई मँगाई।