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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१५२

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इन उपायन सोँ बच्यो मम बंधु कोउ बिहाल
कठिन रोग, वियोग, नाना क्लेश सोँ विकराल?
कौन जूड़ी और ज्वर सोँ बच्यो या जग आय?
कौन जर्जर-क्षीणकारी जरा सोँ बचि जाय?

भई रक्षा कौन की है मृत्यु सोँ अति घोर?
पर्यो है भवचक्र में नहिँ कौन इनके जोर?
नए जन्मन संग उपजत नए क्लेश अपार;
वासना को वंश बाढ़त अंत जासु विकार।

कौन सी सुकुमारि नारी लह्यो या संसार
कठिन व्रत उपवास को फल, भजन को प्रतिकार?
भई काहू की प्रसव की वेदना कछु थोरि
दही दूर्वा जो चढ़ावति विनय सोँ कर जोरि?

होयँगे कोउ देव नीके, कोउ बुरे इन माहिँ,
किंतु मानव दशा फेरै कोउ ऐसो नाहिँ।
होयँगे निर्दय सदय ज्यों नरन में दरसात,
पै बँधे भवचक्र में सब रहत फेरे खात।

है हमारे शास्त्र को यह वचन सत्य प्रमान
'जन्म को यह चक्र घूमत रहत एक समान।'
होत हैं आरोहक्रम में जीव जो अवदात
कीट, खग, पशु साँ मनुज है देवयोनिन जात।