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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२२९

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दोउ देखे चले आवत शाक्य राजकुमार,
प्राणपति जीवन तिहारे, देश के आधार।

कहत हम साक्षात् दर्शन कियो तिनको जाय;
दंडवत करि करी पूजा भक्तिभेंट चढ़ाय।
कह्यो बुधजन रह्यो जो सो भए पूर्ण प्रकार,
परम दुर्लभ ज्ञान ज्ञानिन को सिखावनहार।

भए जगदाराध्य प्रभु, अति शुद्ध बुद्ध महान्;
करत नर निस्तार औ उद्धार दै शुभ ज्ञान
मधुर वाणी सोँ, दया सोँ, जासु ओर न छोर।
कहत दोऊ सेठ प्रभु हैं चले याही ओर

सुनत शुभ संवाद उमड़्यो हृदय माहिँ उछाह,
ज्योँ हिमाचल सोँ उमगि कै कढ़त गंगप्रवाह।
कुँवरि उठि के भई ठाढ़ी हर्ष पुलकित गात
ढारि दृग सों बूंद मोती सरिस, बोली बात-

"तुरत लाओ जाय सेठन को हमारे पास;
पान हित संवाद के शुभ श्रवण को अति प्यास।
जाव, तिनको तुरत लाओ संग माहिँ लिवाय।
कतहुँ जो संवाद तिनको निकसि साँचो जाय!