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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/५०

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( ४१ ) गया है, जैसे, आई, जाई, करी, खाई । तुलसीदास जी ने भविष्यत् मैं पूरबी या शुद्ध अवधी का ही प्रयोग अधिक किया है, उ०—(क) होइहि सोइ जो राम रचि राखा। (ख) जस बर मैं बरनउँ तुम्ह पाहीं । मिलिहि उमहिं तस संसय नाही। अवधी भाषा के साहित्य में दो ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं- जायसी की 'पद्मावत' और गोस्वामी तुलसीदास जी का 'राम- चरित-मानस'। इन दोनों ग्रंथों में पूरबी और पच्छिमी दोनों (अवधी) के रूप मिलते हैं- (क) भयउ सो कुंभकरन बलधामा।-तुलसी (ख) तेइ सब लोक लोकपति जीते ।-तुलसी (ग) जाकर चित अहिगति सम भाई।-तुलसी (घ) जेहि कर जेहि पर सत्य सनेहू ।--तुलसी सो तेहि मिलत न कछु संदेहू।--तुलसी (च) तेहि कर वचन मानि बिस्वासा ।--तुलसी (छ) जो जाकर सो ताकर भयऊ।-जायसी (ज) जेहि कइ अस पनिहारी से रानी केहि रूप !- जायसी (झ) लागी सब मिलि हेरइ। ---जायसी (ट) लाग सो कहइ रामगुनगाथा।-तुलसी (ठ) लगे चरन चाँपन दोउ भाई।-तुलसी (ड) बंधु बिलोकि कहन अस लागे ।--तुलसी भूतकालिक क्रिया का आकारांत रूप विशुद्ध अवधी में