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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/६१

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६) सावनी तीज सुहावनी को सजि सृहे दुकूल सवै सुख साधा-पद्माकर । (७) जा बिहॅस मुख सुंदर ना मतिराम बिहान को बारिज लाजै।-मतिराम । (८) बमननि तानि के वयारि वारियनु है। मतिराम। (६) जा कह जामह हेतु नहीं कहिप सु कहा तिहिकी गति जान । -दाम। (१०) हिम्मत यहाँ लगि है जाकी भट-जोट में।-भूषण । (११) जमुनाजल का जात ही डगरी गगरी-जाल- दास (ब्रज 'गागर' होगा) (१२) दौरि दौरि जेहि तेहि लाल करि डारति है -दास। (१३) निकस्यो झरोखा है के बिगस्या कमलसम कालिदास । ( ब्रज में झगग्वे' होगा ) (१४) छंद भरे में एक पद ध्वनि प्रकाम करि दइ । -दास । (१५) भालु-कपि-कटक अचंभा जकि च गया।- दास । (ब्रज 'अचंभीर होगा ) (१६) आलम जान से कुंजन में करी केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं ।-आलम । यह तो अवधी का मेल हुआ, अब खड़ी बोली की शान देखिए-