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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३

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भूमिका


ॐपूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदुच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरु तन्नमामि ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।

गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

ध्यानमूलं गुरोर्मुर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम् ।

मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोजमूलं गुरोः कृपा ॥

जब मैं हरिद्वार को संवत् १९७१ में गया, तब वहां पर कई एक साधु जान पहिचान के मुझ से मिले, और कहा कि जैसे आपने ईश, केनादि आठ उपनिषदों पर भाषा टीका किया है यदि उसी श्रेणी पर बृहदारण्य की टीका भी मध्यदेशी भाषा में कर दें तो लोगों का बड़ा कल्याण हो, मैंने उनसे कहा कि वाक्यदान का प्रदान तो नहीं करता हूं,...पर यदि