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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७४२

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७२८ वृहदारण्यकोपनिषद् स० भक्षण करें, पहिला ग्रास उस मन्त्र करके भतगा करें, "तत् सवितुर्वरेण्यं मधु वाता ऋतायत मधु क्षरन्ति मिनभायः माची- नः सन्त्वोषधी: भूः स्वाहा" दृसग ग्राम मरे म नि हुये मन्त्र करके भक्षण करें, "मर्गो देवस्य धीमहि मधु नहातोपमो मधुमत्पार्थिव रजः मधु धीरस्तु नः पिता भुवः स्वाहा' तीसरा ग्रास इस नीच लिग्वे इये मन्त्र करके भनगा करें, "धियो यो नः प्रचोदयात् मधुमानो वनस्पतिर्गधुमां अन्तु सूर्यः मावी. वो भवन्तु नः स्वः स्वाहा" चीय ग्राम बी इम नाम लिम्बे हुये मन्त्र को पढ़कर मक्षण करें, "तत्मवितीयं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् मधुमानो यनम्पति- मधुमां अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तु नः मध बाता मातायंत मधु क्षरन्ति सिन्धवः माध्वीनः सन्त्वोषधीर्माचार्गावो भवन्तु नः अहमेवेदं सर्वं भूयासं भूर्भुवः स्य: स्वाहा" इसके पश्चात् श्राचमन कर दोनों हाथ धोकर धग्नि से पीछे पूर्व की तरफ सिरदाना करने. सो जाय और दूमेरे दिन प्रातःकाल उठकर सर्वव्यापी परमात्मा सूर्य की प्रार्थना करे जिसका यह मन्त्र है "दिशाम् एक.पुण्डरीरम् असि" हे सूर्य, भगवन् ! तू पूर्व पश्चिम प्रादि समस्त दिशाओं का श्रेष्ठ और अखएड अधिपति और कमलबत् सब को अतिप्रिय है इस लिये मैं चाहता हूं शि मनुष्यों में श्रेष्ठ हो जाऊं और कमलवत् सबको प्रिय लगू इसके उपरान्त जिस मार्ग करके वह गया था उसी मार्ग करके यज्ञमण्डप में लौट आकर अग्नि के पास घुटनों के बल बैठकर वक्ष्य- मारण वंश ब्राह्मण का जप करे यानी ऋषि और प्रापियों के शिष्य का उच्चारण करे ॥ ६ ॥