पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१११

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विलासः२]
(९१)
भाषाटीकासहितः।


(और) वे मुझे क्या कहेंगे? (अब इस समयमें) राज्य (चाहै) पातालको जाय (परंतु शरीरको) सप्राण रखना उचित नहीं! (इसमें शोक, विषाद, शंका इत्यादिककी संसृष्टि से विशेष चमत्कार भासित होता है)

उषसि प्रतिपक्षकामिनी सदनादतिकमंचति
प्रिये। सुदृशो नयनाब्जकोणयोरुदियाय त्वर-
याऽरुणयुतिः[१]॥६४॥

प्रातःकाल सपत्नी के घर से आएहुए प्रियतम को स्वसन्निध (देख) सुनैनी (भामिनी) के नयनरूपी कमलौं के कोण शीघ्रही अरुणता को प्राप्त हुए (रोष से लाल नेत्र हुए यह भाव इसमें 'खंडिता' नायिका है)

क्षमापणैकपदयोः पदयोः पतति प्रिये। शेमुः
सरोजनयनानयनारुणकांतयः॥६५॥

क्षमापन के स्थान चरणों में प्रियतम के गिरने से कमल जयनी (नायिका) के नयनों की अरुणता शांत हुई (रोष गया यह भाव)

निर्वासयंती धृतिमंगनानां शोभा हरेरेणदृशो
धयंत्याः। चिरापराधस्मृतिमांसलोऽपि रोषः
क्षणप्राणिको बभूवै[२]॥६६॥

स्त्रियों के धैर्य को दूर करनेवाली जो सिंह की शोभा


  1. 'वैतालीय' छंद।
  2. 'उपजाति' अर्थात् 'इन्द्रवज्रा' और 'उपेन्द्रवजा' का संकर।