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पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/११५

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विलासः२]
(९५)
भाषाटीकासहितः।

पाटीरद्रुभुजंगपुंगवमुखायाता इवातापिनो वाता
वांति दहंति लोचनममी ताम्रा रसालद्रुमाः।
एते हंत किरंति कूजितमयं हालाहलं कोकिला
बाला बालमृणालकोमलतनुः प्राणान् कथं
रक्षतु॥७३॥

चंदन वृक्ष संबंधी बडे बडे सर्पोंके मुख से निकली हुई वायु के समान संतप्त समीर चलती है, आरक्तवर्णपल्लवयुक्त आम्रद्रुम नेत्रौंको दहन करते हैं, कोकिलाकी वाणी विष (सा) बरसाती है, हाय! (फिर) नूतनोत्पन्नमृणाल के समान कोमल अंगवाली बाला किस प्रकार प्राणकी रक्षा करेगी? (वसंत आगम मे विरहणी की जो दशा होती है उसका वर्णन है। एक साथ अनेक भाव दरसाने से 'समुच्चय, अलंकार हुआ)

आयातैव निशा मनो मृगहशामुन्निद्रमातन्व-
ती मानो मे कथमेष संप्रति निरातकं हदि
स्थास्यति। ऊहापोहमिमं सरोजनयना याव-
द्विधत्तेतरां तावत्कामनृपातपत्रसुषमं बिंबं
बभासे विधोः॥७४॥

मृगलोचनियों के मन में उन्निद्रता[१] को विस्तार करनेवाली रात्रि आगई, अब यह मेरा मान हृदय में निशंक होकर कैसे


  1. नींद के न आने के भाव को।