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पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१२५

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विलासः२]
(१०५)
भाषाटीकासहितः।


की श्यामता, गरल और शुन्नता अमृत है; इसी से नायिका जिस पुरुष की ओर अमृत दृष्टि से अर्थात् प्रसन्न होकर देखती है उसे परमानंद होता है और जिसे विष दृष्टि से अर्थात् क्रुद्ध होकर देखती है उसे मोह होता है यह भाव । इसमें 'अपन्हुति' अलंकार है)।

अलिर्मृगो वा नेत्रं वा यत्र किंचिद्विभासते।
अरविंदं मृगांको वा मुखं वेदं मृगीदृशः॥९३॥

इस मृगनयनी का (यह) मुख है, अथवा मृगांक [चंद्रमा] है, अथवा कमल है; और इस (मुख) में शोभायमान (यह) नेत्र है, अथवा मृग है, अथवा भ्रमर है? (ऐसी ऐसी शंका होती है। मुख में नेत्र, मृगांक में मृग और अर विन्द में अलि होतेही हैं इससे शंका अधिक पुष्ट हुई। यह 'संदेह', अलंकार है)

सुविरलमौक्तिकतारे धवलांशुकचंद्रिकाचम-
त्कारे। वदनपरिपूर्णचन्द्रे सुंदरि राकाऽसि ना
त्र संदेहः॥९४॥

(हारके विरल) मौक्तिकरूपी तारौंवाली, शुभ वस्त्र (के प्रकाश) रूपी चंद्रिका से चमत्कारवाली, वदनरूपी पूर्णचंद्रवाली हे सुन्दरि! तू पौर्णिमा है, इसमें संदेह नहीं ('रूपक' अलंकार है)

रूपजला चलनयना नाभ्यावर्ता कचावलि-