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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/५०

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८—दूसरा दर्शन योग है। यह पातञ्जलि ऋषि का बनाया हुआ है, जो ईसा से प्रायः २०० बरस पहिले हुए थे। इनका मत वही है जो कपिल का है पर यह ईश्वर को मानते हैं। मनुष्य की आत्मा के मोक्ष होने का एक उपाय यह भी है कि मनुष्य परमात्मा का ध्यान करे और प्रकृति के बन्धन से छूट कर उसमें लीन हो जाय।

९—तीसरा दर्शन गौतम ऋषि का चलाया हुआ न्याय है। न्याय में प्रमाणों से किसी वाक्य का झूठ सच जांचना सिखाया जाता है। गौतम की शिक्षा यह है कि आत्मा को छोड़ सारी वस्तुओं को परमेश्वर ने बनाया है। आत्मा अनन्त और अविनाशी है। आत्मा जब पूरा पूरा ज्ञान प्राप्त कर लेता है तो शरीर के बन्धन से छूट जाता है।

१०—चौथा दर्शन वैशेषिक कहलाता है इसके रचयिता कणाद ऋषि हैं। कणाद का कथन है कि पृथ्वी उन छोटे छोटे कणों से बनी है जिनमें किसी प्रकार का रूपान्तर नहीं हो सकता और जो नित्य हैं पृथ्वी और उसपर की सारी बस्तु कितनी ही क्यों न बदलती रहें। आत्मा के बिषय में उनकी शिक्षा वही है जो गौतम की है।

११—शेष दोनों दर्शन मीमांसा कहलाते हैं। इनमें से पहिले का नाम पूर्व मीमांसा है। इसको जैमिनि ऋषि ने रचा था। इसका अभिप्राय यह है कि लोग जो अपना धर्म्म कर्म्म भूल गये हैं उनको सावधान करे और सच्चा धर्म्म सिखाये। मनुष्य का धर्म्म यह है कि वेद की शिक्षा के अनुसार चले और उसी की दी हुई रीतियों के अनुसार पूजा करे। मन्त्र पढ़े और यज्ञ और हवन करे। जैमिनि परमेश्वर के विषय में कुछ नहीं कहते।

दूसरे को उत्तर मीमांसा अथवा बादरायण व्यास का वेदान्त