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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१७५

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सत्यहरिश्चंद्र

अपने पास रख, जब रोहिताश्व मिले उसके दहिने हाथ पर बाँध दीजिओ।

सखी---जो आज्ञा। ( रक्षाबंधन अपने पास रखती है )

ब्रा०---तो अब आप सावधान हो जायँ, मैं मार्जन कर लूँ।

रानी---( सावधान होकर ) जो आज्ञा।

ब्रा०---( दूर्वा से मार्जन करता है )

देवास्त्वामभिषिञ्चन्तु ब्रह्मविष्णुशिवादयः।
गन्धर्वाः किन्नरा नागा रक्षां कुर्वन्तु ते सदा॥
पितरो गुह्यका यक्षा देव्यो भूताश्च मातरः।
सर्वे त्वामभिषिञ्चन्तु रक्षां कुर्वन्तु ते सदा॥
भद्रमस्तु शिवश्चास्तु महालक्ष्मीः प्रसीदतु।
पतिपुत्रयुता साध्वी जीव त्वं शरदां शतम्॥

( मार्जन का जल पृथ्वी पर फेंककर )

यत्पापं रोगमशुभं तद्दूरे प्रतिहतमस्तु।

( फिर रानी पर मार्जन करके )

यन्मङ्गलं शुभं सौभाग्यं धनधान्यमारोग्यम्बहुपुत्रत्वं तत्सर्वमीशप्रसादात् ब्राह्मणवचनात् त्वय्यस्तु॥

( मार्जन करके फूल-अक्षत रानी के हाथ में देता है )

रानी---( हाथ जोड़कर ब्राह्मण को दक्षिणा देती है ) महाराज,