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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४५८

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मुद्राराक्षस

राजा और मंत्री दोनो के भरोसे; सो तुम्हारा राज तो केवल सचिव के भरोसे है, फिर इन बातो के पूछने से क्या? व्यर्थ मुँह दुखाना है, यह सब हम लोगो के भरोसे है, हम लोग जानें।

( राना क्रोध से मुँह फेर लेता है; नेपथ्य में दो वैतालिक गाते हैं )

( राग बिहाग )

प्रथम वै०---

अहो यह शरद शंभु ह्वै आई।
कास-फूल फूले चहुँ दिसि तें सोइ मनु भस्म लगाई॥
चंद उदित सोइ सीस अभूषन सोभा लगति सुहाई।
तासो रंजित घन-पटली सोइ मनु गज-खाल बनाई॥
"फूले कुसुम मुंडमाला सोइ सोहत अति धवलाई।
राजहंस सोभा सोइ मानों हास-विभव दरसाई॥
अहो यह शरद शंभु बनि आई

( राग कलिगडा )

हरौ हरि-नैन तुम्हारी बाधा।
सरद-अंत लखि सेस-अंक तें जगे जगत-सुभ-साधा॥
कछु कछु खुले मुँदे कछु सोभित आलस भरि अनियारे।
अरुन कमल से मद के माते थिर भे जदपि ढरारे॥
सेस-सीस-मनि-चमक-चकौंधन तनिकहुँ नहिं सकुचाहीं।
नींद भरे श्रम जगे चुभत जे नित कमला-उर माहीं॥
हरौ हरि-नैन तुम्हारी बाधा।