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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४७८

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मुद्राराक्षस

कर०---तब चाणक्य दुष्ट ने सब लोगों के नेत्र के परमानंददायक उस उत्सव को रोक दिया और उसी समय स्तनकलस ने ऐसे-ऐसे श्लोक पढ़े कि राजा का भी मन फिर जाय।

राक्षस---कैसे श्लोक थे।

कर०---('जिनको विधि सब' पढ़ता है )

राक्षस---वाह मित्र स्तनकलस, वाह क्यों न हो! अच्छे समय में भेदबीज बोया है, फल अवश्य होगा। क्योकि---

नृप रूठे अचरज कहा, सकल लोग जा संग।
छोटे हू मानै बुरो परे रंग में भंग॥

मलय०---ठीक है। ( नृप रूठे यह दोहा फिर पढ़ता है )

राक्षस---हॉ, फिर क्या हुआ?

कर०---तब आज्ञाभंग से रुष्ट होकर चंद्रगुप्त ने आपकी बड़ी प्रशंसा की और दुष्ट चाणक्य से अधिकार ले लिया।

मलय०---मित्र भागुरायण! देखो प्रशंसा करके राक्षस में चंद्रगुप्त ने अपनी भक्ति दिखाई।

भागु०---गुण-प्रशंसा से बढ़कर चाणक्य का अधिकार लेने से।

राक्षस---क्यो जी, एक कौमुदीमहोत्सव के निषेध ही से चाणक्य चंद्रगुप्त में बिगाड़ हुआ कि कोई और कारण भी है?

मलय०---क्यों मित्र भागुरायण! अब और बैर में यह क्या फल निकालेंगे?

भागु०---यह फल निकाला है कि चाणक्य बड़ा बुद्धिमान है,