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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५२३

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भारतेंदु-नाटकावली

क्रोध करके प्रमादी समझकर उन वधिकों ही को मार डाला। तब से वधिक जो किसी को वधस्थान में ले जाते हैं और मार्ग में किसी को शस्त्र खींचे हुए देखते हैं तो छुड़ा ले जाने के भय से अपराधी को बीच ही में तुरंत मार डालते हैं। इससे शस्त्र खींचे हुए आपके वहाँ जाने से चंदनदास की मृत्यु में और भी शीघ्रता होगी।

[ जाता है

राक्षस---( आप ही आप ) उस चाणक्य बटु का नीतिमार्ग कुछ समझ नहीं पड़ता क्योंकि---

सकट बच्यौ जो ता कहे तो क्यों घातक-घात।
जाल भयो का खेल मैं कछु समझ्यौ नहिं जात।।
( सोचकर ) नहिं शस्त्र को यह काल यासों मीत-जीवन जाइहै।
जो नीति सोचैं या समय तो व्यर्थ समय नसाइहै।।
चुप रहनहू नहिं जोग जब मम हित विपति चंदन पयौ।
तासों बचावन प्रियहि अब हम देह निज विक्रय कयौ॥

( तलवार फेंककर जाता है )