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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६५९

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भारतेंदु-नाटकावली

राजा––अच्छा, इसको निकालो, कोतवाल को अभी सरब-मुहर पकड़ लायो। (गँड़ेरिया निकाला जाता है, कोत-वाल पकड़ा आता है) क्यो बे कोतवाल! तैने सवारी ऐसी धूम से क्यों निकाली कि गॅड़ेरिए ने घबड़ाकर बड़ी भेड़ बेची, जिससे बकरी गिरकर कल्लू बनियाँ दब गया?

तवाल––महाराज महाराज! मैंने तो कोई कसूर नहीं किया, मैं तो शहर के इंतजाम के वास्ते जाता था।

(आप ही आप) यह तो बड़ा गजब हुआ, ऐसा न हो कि यह बेवकूफ इस बात पर सारे नगर को फूँक दे या फॉसी दे। (कोतवाल से) यह नहीं, तुमने ऐसे धूम से सवारी क्यो निकाला?

राजा––हाँ हाँ, यह नहीं, तुमने ऐसे धूम से सवारी क्यों निकाला कि उसकी बकरी दबी?

कोतवाल––महाराज महाराज––

राजा––कुछ नहीं, महाराज महाराज ले जाओ, कोतवाल को अभी फॉसी दो। दरबार बरखास्त।

(लोग एक तरफ से कोतवाल को पकडकर ले जाते हैं, दूसरी ओर से मंत्री को पकडकर राजा जाते हैं)

(जवनिका गिरती है)