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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६६६

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भारतेंदु-नाटकावली


गोबरधन॰––हम हम। हमको तो हुकुम है।

कोतवाल––हम लटकेंगे। हमारे सबब तो दीवार गिरी।

राजा––चुप रहो, सब लोग। राजा के आछत और कौन बैकुंठ जा सकता है! हमको फाँसी चढ़ाओ, जल्दी, जल्दी।

गुरु––जहाँ न धर्म्म न बुद्धि नहिं नीति न सुजन-समाज। ते ऐसहि आपुहि नसै, जैसे चौपटराज॥

(राजा को लोग टिकठी पर खड़ा करते हैं)
(पटाक्षेप)