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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६८३

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भारतेंदु-नाटकावली

लोगो को करना है। यह सब जो कुछ कहा-सुना गया, केवल ऊपरी जी से।

सावित्री--तब कुछ चिंता नहीं। चलो, अब हम लोग माता के पास चले। किंतु वहाँ मेरे सामने इन बातों को मत छेड़ना।

सखीगण--अच्छा, चलो।

(जवनिका गिरती है)