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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६९६

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सतीप्रताप

प्राणनाथ को अकेले जाने दिया। हाय! अब क्या करूँ? कहां जाऊँ? क्या मुझे निगोड़ी को मौत नहीं है? प्राणनाथ! तुम कहाँ गए? एक बात हमारी सुनते जाओ। ( कुछ ठहर कर ) जान पड़ता है दूर निकल गई तो चलूँ मैं ही खोज कर मिलूँ। मैंने बुरा किया जो आज उन्हें अकेले जाने दिया। ( अत्यंत व्याकुलता के साथ जाती है )।

( नेपथ्य में गान )

हाय सुख देख नहिं नेक।।
यहां कठोर विधाता कीनो सुखभंजन की टेक॥
द्वै दिन हू सुख हो नहिं बीतत भोगत जन के चैन।
दुख सागर बोरत अचानचक नेकहु दया करै न॥
जग के झूठे सुख सम्पत्ति में धोखे हु भूलहु नाहिं।
अरे बावरे बेग धाई गहु चरन-तरोवर छाहिं॥

( पटाक्षेप )