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पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१२९

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११८ भारतेंदु हरिश्चन्द्र कौट तशा मिसेज बेसेंट उपस्थित थीं और कर्नल साहब का एक घंटे तक. अंग्रेजी में व्याख्यान हुआ था। व्याख्यान समाप्त होने पर कुछ लोग लोगों के अंगरेजी न समझने पर और उनके कहने पर लोकनाथ चौबे ने प्रार्थना की कि यहाँ हम लोग बहुत से मनुष्य अंग्रेजी भापा नहीं समझ सकते, इसलिए यदि कोई विद्वान उसे हिन्दी में समझा दें तो अच्छा हो। इसके अनंतर बाबू रामदास मित्र, रामराव एम० ए०, बालकृष्णाचार्य एम. ए० आदि अंग्रेजी के विद्वानों के रहते हुए भी भारतेन्दु जी को चौबे जी ने नरक कहा कि बबुआ बम्ही समझाय दे तो अच्छा है।' ये चौबे जी भारतेन्दु जी से उस समय चिढ़े से थे, इसी से उन्होंने ऐसा किया क्योंकि वे जानते थे कि भारतेन्दु जी ने अंग्रेजी भाषा की उच्च डिगरी नहीं प्राप्त की थी और साथ ही वे यह भी पहिले से नहीं जानते थे कि उन्हें इस व्याख्यान का हिन्दी अनुवाद वहीं सुनना पड़ेगा, जिससे वे विशेष मन देकर उसे सनते रहते। पं० सुधाकर जी द्विवेदी के भी भारतेन्दु जी से कहने पर कि हाँ हाँ, आपही उठकर समझा दीजिए, इन्होंने कुल व्याख्यान का मतलब आध घंटे में कह डाला। इसके अनन्तर पं० रामराव ने वक्ततां देते हुए भारतेन्दु जी का कर्नल साहब को परिचय दिया। और वे बाबू साहब के गृह पर उनसे मिलने आये थे और इनके संगृहीत बादशाही समय के पत्र आदि देखकर बहुत खुश हुए थे। होमियोपैथिक चिकित्सा का प्रारम्भ होने पर इन्होंने सं० १६२५ में पहिले पहल एक दातव्य चिकित्सालय खोला जिसके व्यय के लिए यह दस रुपये मासिक बराबर सं० १६३० वि० तक देते रहे। सं० ११२८ के इंटरनैशनल एक्जेबिशन में इन्होंने कुछ कार्य किया था, जिसके लिए युवराज सप्तम एडवर्ड का