पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२३०

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२२२ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कथानकों का अलग-अलग उल्लेख किया गया है। इससे पाठकों को यह लाभ है कि वे किस पुराण में अथवा उसके किस अंश में क्या कथा भाग है, इसे झट जान सकेंगे।' 'सहज में लोग जान जायँगे कि चार लाख श्लोक समूह के अठारह टुकड़ों में क्या क्याविषय सन्निवेशित है।' यह पहिले-पहिल सन्१८७५ ई० की हरिश्चन्द्र चन्द्रिका में प्रकाशित हुआ था। तिरानबे दोहों में 'वैशाख-माहात्म्य' दिखलाया गया है। इस मास में श्रद्धालुओं कोक्या करना चाहिए, यह बतलाया गया है। कार्तिक कर्मविधि में इस महीने की पुराणानुमोदित नित्य- क्रियाएँ वर्णित हुई हैं । खान, पान, दान, स्नान अदि सभी। का शास्त्र के वचनों सहित विवरण दिया गया है। 'कार्तिक नैमि- त्तिक कृत्य में महीने के तीसों दिन का अलग अलग कृत्य बत- लाया गया है। कार्तिक स्नान' में बीस दोहे और पचीस पद हैं। इसमें श्रीकृष्ण के अनन्य प्रम तथा दीपदान-लीला का वर्णन है। कहा जाता है कि किसी वर्ष बीमारी के कारण यह गंगा-स्नान को न जा सके थे, इस लिये ये पद बनाए थे। 'मासानाम्मान- शीर्षोहम्' से पवित्र महीने की महिमा वर्णन में 'मार्गशीर्ष महिमा' लिखी गई। इसमें भी महीने भर के नित्य-कर्म की विधि दी है। अंत में माघ-स्नान-विधि भी संक्षेप में दे दी गई है। 'वृहन्नारदीय- पुराण' से संकलित कर 'पुरुषोत्तम मास विधान' लिखा गया। इसमें स्नान-दान को विधि लिखी है। अंत में पाँच पद 'पुरुषो- त्तम पंचक' नाम से दिए गए हैं। काव्य राजभक्ति-पूर्ण तथा धर्म-सम्बन्धी पद्य-रचनाओं का अलग उल्लेख हो चुका है। इसमें भारतेन्दु जी की अन्य-पद्य रचनाओं