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पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२५०

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२४२. [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदर्श हो सकती थी। पर लल्लूलाल जी के बाद कोई साठ साल तक किसी ने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया। अन्त को स्वर्गीय बा० हरिश्चन्द्र जी ने मरी हिन्दी को फिर से जिलाया। अंतत: सं० १९४२ वि० के भाद्रपद में भारतेन्दु जी ने “कवि- वचन सुधा" नामक पहिला मासिकपत्र निकाला। पहिली जिल्द की पाँचवीं संख्या मेरे सामने है, उस पर सं० १६२४ वि० पौष शुद्ध १५ छपा है, और शीर्ष-दोहा नहीं है । इसमें उक्ति युक्ति रस कौमुदी और चंद रासो का दिल्ली वर्णन तथा कुछ स्फुट सवैये छपे हैं। दूसरी जिल्द भाद्रपद शुक्ल १५ सं० १९२७ को आरम्भ अस्सी संगम पर याने गंगा जी के पच्छिम तरफ थोड़े ही दूर पर राजा रलाराम साहेब ने अपने काशी बास करने के लिये एक बारहदरी संगीनी और केतने मकान असतबल खाना वगैरह बनवाया है और अब बाग़ बन्ने की छरदीवारी पक्की तैयार हो रही है और दर्वाज़ा उसका पच्छिम तरफ सड़क में बड़ा ऊँचा बना है बँगला तो देखकर लोग बहुत तारीफ करते हैं यकीन है कि बाग़ तैय्यार हो जाने पर बहुत अच्छा कैफियत का मकान नज़र आवेगा और सारे मकानों का सिरताज बन जावेगा। सुधाकर (कार्तिक कृ० २ सं० १६०४ की संख्या) से उद्धृत- हमको तो मत के छेड़-छाड़ से कुछ प्रयोजन . नहीं क्योंकि वर्तमान समय में सूक्ष्मदर्शी कम दिखलाई पड़ते हैं और जो हैं भी सो इस प्रकार की अनुचित चर्चा हाथ नहीं डालते किस वास्ते कि मतामत का विवाद केवल अज्ञानता मात्र है परन्तु उत्तम पुरुष जो होते हैं सो अनुचित विषय अपने सामने देख कर चुप नहीं रह सकते इसलिए एक महात्मा ने यह दृढ़ प्रतिज्ञा की है कि डाक्टर बालंटाइन ने दर्शन-शास्त्र पर जहाँ जहाँ कुर्तक किया है उन सबों का खंडन कर संस्कृत अथवा भाषा में एक पुस्तक छपवावें ।