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समर्पण ।
जिनकी कृपासे
आज मुझे यह पुस्तक लेकर
मातृभाषा-हिंन्दीके प्रेम विद्वानोंकी
सेवामे
उपस्थित होनेका मौका मिला है;
उन्हीं
राजपूताना म्यूजियम, अजमेरके
सुपरिटैण्डैण्ट.
रायबहादुर पण्डित गौरीशंकर ओझाको
यह तुच्छ भेंट
सादर और सप्रेम
समर्पित करता हूँ ।