टीपू सुलतान अपने राज में खेती बापीको उति देना शुरू किया, जिससे धोदेही दिनों में उसका देश फिर पहले की तरह खुशहाब दिखाई देने लगा।"* ऊपर लिखा जा चुका है कि टीपू ने सचाई के साथ सन्धि की शों का पालन किया। किन्तु टीपू की वीरता टीपू को मिटाने और उसकी योग्यता और उसके राज का फिर का सङ्कल्प "" से पनपना हो अंगरेजों के लिए सब से अधिक खतरनाक था। कॉर्नवालिस के पत्रों से साबित है कि वह टीपू के अस्तित्व ही को भारत में अंगरेजी राज के लिए खतरनाक मानता था। वेल्सली के पत्रों से साबित है कि वह भारत में कदम रखने से पहले आता अन्तरीप ही में टीपू पर हमला करने और जिस तरह हो सके उसे कुचलने का सङ्कल्प कर चुका था। उसकी निजाम और पेशवा को पङ्गुल कर देने की कोशिशे एक प्रकार से टीपू को कुचलने की अधिक गहरी योजना के केवल अङ्ग थे। with that unremitting activity and zealons warmth which we could look for in a prince, who had come toasenous determination by every reasonable means in his power to regain what he had lost " shall take a short retrospect of the leading features of has conduct since 1795 "This was first marked by an honourable and unusually punctual discharge of the large sum which remained due at the conclusion of the peace to the allies Instead of sinking under his misfortunes he exerted all bus activity to repaur the ravages of war Ho began to add to the forti- ficanons of his capital-to remount his cavalry, to recrunt and dicaplune his Infantry, to punsh his refractory tributanes, and to encourage the cultiva- tion of be country, which was soon restored to its former prosperty "- WellesleysDispatckes, vol 1, Appendix pp 668,669
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