सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७८
पुस्तक प्रवेश

७८ पुस्तक प्रवेश भारत के पूर्वी तट पर भी मुसलमानों की बस्तियाँ और उनका महत्व बढता चला गया। इन बस्तियों के अलग अलग नाम, हवाले और मुसलमानों की बढती हुई तादाद को बयान करने की आवश्यकता नहीं है । एक मुसलमान फकीर नजद वली (Nathad Vali) के प्रभाव से ग्यारवीं सदी में मदुरा और त्रिचन्नपल्ली के इलाकों में अनेक लोगों ने इसलाम मत स्वीकार किया । यह नजद वली टरकी का एक शहज़ादा था, जो फकीर हो गया था, और अरब, ईरान और उत्तर भारत से होता हुआ त्रिचन्नपल्ली पहुंचा था, जिसे उस समय त्रिसूर कहते थे । बारहवीं सदी में एक दूसरे फ़क़ीर सय्यद इब्राहीम शहीद के प्रभाव से अनेक लोगों ने इसलाम मत स्वीकार किया। इसी तरह बाबा फखरुद्दीन इत्यादि अनेक अन्य इस- लाम धर्म प्रचारकों के नाम उस समय के इतिहास में मिलते हैं । बाबा फखरुद्दीन के प्रभाव से पेन्नुकोण्डा के हिन्दू राजा ने इसलाम मत स्वीकार किया। यह भी साफ पता चलता है कि इन अरबों और मुसलमानों की कोशिश से भारत और खास कर दक्खिन भारत की तिजारत और खुशहाली में बहुत बड़ी तरक्की हुई । दक्खिन के हिन्दू राजाओं की अोर से चीन जैसे दूर दूर के देशों में मुसलमान एलची और राजदूत भेजे जाते थे । अनेक हिन्दू दरबारों में मुसलमान मन्त्री और प्रधान मन्त्री थे । अनेक प्रान्तों के शासक मुसलमान नियुक्त किए जाते थे । हिन्दू राजाओं के अधीन बड़ी बड़ी मुसलमान सेनाएँ थीं। इसी तरह गुजरात के वल्लभी राजा बलहार ने अपने राज के अन्दर मुसलमानों का बड़े हर्ष और पादर के साथ स्वागत किया । काठियावाड़, कोकण और मध्यभारत के अन्य हिन्दू राजाओं ने भी मुसलमान