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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१३२

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश उसकी स्त्री ने कबीर का पालन पोषण किया । बनारस में रह कर कबीर हिन्दू और मुसलमान दोनों मतों के सिद्धान्तों से पूरी तरह परिचित हो गया । मोहसिन फानी लिखता है कि कबीर ने लड़कपन ही में अनेक हिन्द्र और मुसलमान विद्वानों और सन्तों से भेट की । बहुत दिनों वह जौनपुर, जैसी इत्यादि मे शेख तकी और अन्य मुसलमान सूफियों और पीरों के के साथ रहा, जिनका जिक्र कबीर साहब ने अपनी रमैनी में किया है। इसके बाद कबीर ने बनारस मे अपना सत्सङ्ग शुरू कर दिया । कबीर के विचार इतने स्वतन्त्र थे कि शुरू में मुस्खलमान मौलवी और हिन्दू पण्डित दोनों उससे बेहद नाराज़ हुए । इन लोगों ने हर तरह से कबीर को कष्ट ___ पहुँचाने और दिक्क करने की कोशिश की । अन्त में हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियों में से कबीर के हजारों अनुयायी हो गए । जीवन भर कबीर ने अपने पिता का काम यानी कपड़े बुनने का धन्धा नहीं छोड़ा। हिन्दुओं में यह एक बात सदा में प्रसिद्ध रही है कि काशी में मरने से मनुष्य को मुक्ति प्राप्त होती है । इसके विपरीत कहा जाता है कि गोरखपुर से ५५ मील पच्छिम में मगहर में मरने वाले को गधे की योनि में जन्म लेना पड़ता है । कबीर ने अन्त समय निकट पाने पर जान बूझ कर इस प्राचीन अन्ध- विश्वास की अवहेलना प्रकट करने के लिए काशी से मगहर के लिए प्रस्थान किया और मगहर ही में अपने हज़ारों हिन्दू और मुसलमान अनुयाइयों की मौजूदगी में चोला छोडा । कहा जाता है कि कबीर के मरने के बाद उसके कुछ हिन्दू और मुसलमान अनुयाइयों में झगड़ा हुआ, हिन्दू उसे हिन्दू कहते थे और उसके शरीर को जलाना चाहते थे, मुसलमान उसे मुसलमान मान कर दफन करना चाहते थे।