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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२९६

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'भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अगरेजी राज ने अंगरेजो को अाज्ञा दी कि किशनदास को वापस भेज दो, किन्तु अंगरेजों ने साफ इनकार कर दिया। इतने पर भी सिराजुद्दौला ने शांति से ही सब मामले का निबटारा करना चाहा और कासिमबाजार की अंगरेजी कोठी के मुखिया वाट्ल को बुला कर समझाया कि “यदि अंगरेज़ शान्त व्यापारियों की तरह देश में रहना चाहते हैं तो अब भी बड़ी खशी के साथ रहें, किन्तु सूबे के शासक की हैसियत से मेरा यह हकुम है कि वे फौरन उन सब किलों को ज़मीन के बरावर कर दें, जो उन्होंने हाल में बिना मेरी इजाज़त बना डाले हैं।"* किन्तु अंगरेज व्यापारियों ने जिनकी आकांक्षाएँ बहुत बढ़ी हुई थी और जिनके षड्यंत्र इस समय दूर दूर तक पहुँच चुके थे, जरा भी परवा न की। उनकी किलेबन्दियाँ और अधिक जोरों के साथ चलती रहीं। सिराजुद्दौला के पास अब सिवाय उन्हें दंड देने और रोकने के और कोई चारा न था। लाचार होकर सिराजुद्दौला ने २४ मई सन् १७५६ ई० को अंगरेजी कोठी को घेर लेने के लिए कुछ सेना सिराजुद्दौला को को कासिमबाज़ार भेजी। बावजूद किलेबन्दियों अंगरेजों पर और तोपों के कासिमबाज़ार की कोठी सिरा- चढ़ाई - जुद्दौला की सेना के सामने अधिक देर तकन ठहर सकी। अंगरेज़ मुखिया वाट्स ने हार मान ली और कोठी सिराजुद्दौला के सुपुर्द कर दी। वाट्स और कोठी के दूसरे अंगरेज • Hastings' MSS. In the British Museum, Vol 29,2209