सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५२
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज जाफ़र के साथ जो संधि की, उसमें कम्पनी के हर तरह के हरजाने का हिसाब लगाया गया है, किन्तु इन १२३ मनुष्यों के कुटुम्बियों को मुआवजा दिलवाने का कहीं ज़िक नहीं। जो विदेशी लोग जहाजों में बैठकर भाग निकले थे, उनके बाद १२३ शायद किले के अन्दर वचे भी न थे। कुछ लोगों ने बाद में कुल ऐसे यूरोपनिवासियों की सूची तैयार करने की कोशिश की, जो उस समय कलकत्ते के किले के अन्दर मरे और उसे १२३ तक लाने का प्रयत्न भी किया, फिर भी यह सूची ५६ से ऊपर न पहुंच सकी और ये ५६ भी किसी कोठरी में दम घुटकर नहीं मरे, बल्कि लड़ाई के जख्मों और मामूली रोगों के शिकार हुए। फिर बाकी ६७ कौन थे ? इत्यादि । __ वास्तव में इस झूठे किस्से को फरवरी सन् १७५७ ई० में कलकत्ते के अंगरेज मुखिया हॉलवेल ने भारत से विलायत जाते समय जहाज़ के ऊपर बैठकर गढ़ा था। यह वही हॉलवेल है जिसकी सिराजुद्दौला ने हथकड़ी खुलवा दी थी। अपने झूठो और जाल- साज़ियों के लिए यह अंगरेज़ काफ़ी मशहूर था। मिसाल के तौर पर हॉलवेल के अन्य कारनामों में से केवल एक को यहाँ वयान कर देना काफी होगा। यह घटना कुछ दिनों वाद की है, किन्तु इस स्थान पर वेमौके न होगी। सिराजुद्दौला के बाद मीर जाफ़र को मसनद पर बैठाने के लिए उसने मीर जाफर से एक लाख रुपए रिशवत के ले लिए और मीर जाफ़र की खर तारीफ की। बाद में जब मीर कासिम को मसनद पर बैठारे की ज़रूरत हुई तो उसने तीन लाख रुपए मीर कासिम से लेकर