सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५५
सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला ५५ कलकत्ते से भागे हुए अंगरेज़ कलकत्ते से कुछ नीचे बंगाल की खाड़ी के ऊपर फल्ता नामक स्थान पर जाकर फल्ता में ठहर गए और करीव के महीने वहीं ठहरे रहे। अंगरेज कम्पनी के कारवार की दृष्टि से उस जमाने में कलकत्ते की निस्वत मद्रास अधिक महत्व की जगह थी। फल्ता से इन अंगरेजों ने एक ओर तो मद्रास की कोठी के अंगरेजों को यह लिखा कि मद्रास से नई सना जमा करके बंगाल भेजी जाय और दूसरी ओर क्योंकि कंवल सेना के बल सिराजुद्दौला से जीतना थे असम्भव समझ चुके थे. उन्होंने अपने गुप्तचरों के ज़रिये झूठे सच्चे लोभ दिग्बलाकर कलकत्ते के राजा मानिकचंद को और सिराजुद्दौला के अन्य सनापतियों, दरबारियों और सामन्तों को अपनी ओर फोड़ने के प्रयत्न शुरू किए ! निस्संदेह भेद नीति का यह विस्तृत जाल ही वह मुख्य उपाय था जिसके द्वारा ये मुट्ठी भर निर्बल किन्तु चालाक विदेशी बलवान किन्तु अनुभवशून्य भारतीय नवाव को गिराने की आशा कर रहे थे। स्क्रफ़टन नामक अंगरेज लिखता है :- “यह एक बड़े भारी आश्चर्य की बात मालूस होगी कि सूवेदार (नवाब) ने इतने दिनों इतनी शान्ति से हमें फरता मे क्यों पड़े रहने दिया ।xxx इसकी वजह मैं केवल यह बता सकता हूँ कि वह हमें एक बहुत ही तुच्छ चीन समझता था।xxx और उसे इस बात का गुमान भी न था कि हम सैन्यबल के सहारे फिर बंगाल लौटने की हिम्त करेंगे।"

  • " Refdese ma"

Scretton p. 58