सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७६
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज इसके अलावा फ्रांसीसी भी अंगरेजों से लड़ना नचाहते थे। उन्होंने सिराजुद्दौला का पत्र पाते ही सिराजुद्दौला की इच्छा के अनुसार आपसी समझौते के लिए अपने वकील अंगरेजों के पास भेजे । यहाँ तक कि समझौते की शर्ते भी लिखी गई, जो दोनों पक्षों ने स्वीकार कर ली। नवाव भी समझौते को पालन कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने के लिए राजी हो गया। केवल समझौते के कागज पर वाट्सन के हस्ताक्षर होना बाकी रह गया था। किन्त अंगरेजों का असली मतलव इस तरह के समझौते से सिद्ध न हो सकता था। क्लाइव और वाट्सन दोनों ने फ्रांसीसियों पर हमला करने का निश्चय कर लिया था और ऐन मौके पर वाट्सन ने समझौते के कागज पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। चन्दरनगर पर हमला क्लाइव और वाट्सन दोनों करना चाहते थे, किन्तु हमले के ढंग के विषय में इन दोनों में एक खास मतभेद हो गया। वाट्सन की राय थी कि बिना सिराजुद्दौला से पूछे या बिना उसे सूचना दिए ही चन्दरनगर पर हमला कर दिया जावे, किन्तु क्लाइव इसके विरुद्ध था । क्लाइव चाहता था कि पहले रिशवते देकर या जालसाज़ी करके किसी तरह सिराजुद्दौला की ओर से इस मज़मून का एक पत्र, जिससे मालूम हो कि सिराजुद्दौला हमारे चन्दरनगर पर हमला करने में सहमत है, अपने पास रख लिया जावे और फिर चन्दरनगर पर हमला किया जावे। इस सम्बन्ध में क्लाइव ने ४ मार्च सन् १७५७ को सिलेक्ट