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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३५०

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भारत में अंगरेज़ी राज

M ungamay भारत में अंगरेजी राज जुद्दौला ने मीरजाफर के सामने जमीन पर फेंक दी और कहा--- "मीर जाफर इस पगड़ी की लाज तुम्हारे हाथों में है !" मीर जाफर ने बड़े श्राद के साथ पगड़ी उठाकर सिराजुद्दौला के हाथों में दी और अपने दोनों हाथ छाती पर रख कर बड़ी गम्भीरता के साथ फिर एक बार झुक कर सिराजुद्दौला की वफ़ादारी की कसम खाई । निस्सन्देह मीर जाफ़र उस समय अपनी आत्मा और सिराजुद्दौला दोनों को जान बूझकर धोखा दे रहा था। वह विश्वासधात पर कमर कस चुका था। सिराजुद्दौला के सामने से हटते ही उसने फौरन एक पत्र द्वारा क्लाइव को इस तमाम घटना को सूचना दी। सिराजुद्दौला की सेना में मीर जाफ़र ही अकेला विश्वास- घातक न था । वास्तव में उसकी अधिकांश सेना विश्वासघातको से चलनी चलनी हो चुकी थी। राजा दुर्लभराम और यारलुत्फ खाँ भी अपने तई शत्रु के हाथ बेच चुके थे । ऐन मौके पर जद कि विजय सिराजुद्दौला के पैरों के पास खेलती दिखाई देती थी। मीर जाफर, राजा दुर्लभराम और यारलुत्फ खाँ तीनों अपनी ४५००० सेना सहित मुड़ कर अंगरेजों की ओर जा मिले। थोड़ी देर बाद सिराजुद्दौला का एक मात्र वफादार सेनापति मीर मदन भी मैदान में काम आया । करनल मालेसन लिखना है कि जब तक वीर मीर मदन जिन्दा रहा वह अपनी केवल १२००० सेना से तीनो विश्वास- घातकों के प्रयत्नो को निष्फल करता रहा । उसके जीते जी अंगरेजी सेना के लिए अपने पैर जमा सकना सर्वथा असम्भव था। किन्तु