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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३७५

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मीर जाफ़र

मीर जाफर ११६ जा चुकी है। उस क्रांति के बाद एक सन्धि की गई है जिससे कम्पनी को बड़े ज़बरदस्त फायदे हुए हैं । मुझे मालूम है कि इन सब बातों की तरफ़ एक दर्जे तक (अंगरेज़) कौम का ध्यान आकर्षित हो चुका है। किन्तु मौका मिलने पर अभी बहुत कुछ और किया जा सकता है, बशर्ते कि कम्पनी इस तरह के प्रयलों में लगी रहे जो उसके आज कल के इतने बड़े इलाके और आगे की जबरदस्त सम्भावनाओं दोनों के अनुरूप हों। मैंने कम्पनी को अत्यन्त जोरदार शब्दों में इस बात की ज़रूरत दर्शा दी है कि उन्हें इतनी सेना हिन्दोस्तान भेज देनी चाहिये और बराबर हिन्दोस्तान में रखनी चाहिये, जिससे वे अपने धन और इलाके को बढ़ाने के सब से पहले मौके से फायदा उठा सकें। दो साल की मेहनत और तजरुदे से मैंने इस देश की हुकूमत के विषय में और यहाँ के लोगों के स्वभाव के विषय में जो परिपच ज्ञान प्राप्त किया है उससे मैं साहस के साथ कह सकता हूँ कि इस तरह का मौका जल्दी ही फिर आने वाला है ! नौजूदा सूबेदार x x x बूढ़ा है और उसका नौजवान बेटा इतना ज़ालिम और निकम्मा है और अंगरेजों का इतना खुला दुशमन है कि इस नवाब के बाद उसे मसनद पर बैठने देना करीब करीब ख़तरनाक होगा। केवल दो हजार यूरोपियनों की छोटी सी सेना हमें इन दोनों की ओर से बेखटके कर देगी और यदि इनमें से कोई हमारे साथ झगड़ा करने की हिम्मत करेगा तो इस सेना द्वार हुकूमत को बाग हम अपने हाथों में ले सकेगे। "हिन्दोस्तान के लोगों को अपने राजाओं के साथ किसी तरह का प्रेम नहीं है, इसलिए इस तरह का काम कर डालने में हमें और भी कम कठि- नाई होगीxxx "किन्तु मुमकिन है, इतना बड़ा राज एक तिजारती कम्पनी के लिए बहुत