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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३७९

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१२३
मीर जाफ़र

मीर जाफ़र १२३ कलकत्ते से मुर्शिदाबाद की ओर बढ़ा और वहाँ से मीरन के अधीन नवाब की कुछ सेना साथ लेकर १८ जनवरी सन् १७६० को सम्राट की सेना के मुकाबले के लिए पटने की ओर रवाना हुआ। दूसरी ओर अंगरेज़ों ने मीर जाफर और मीरन दोनों से ऊपर ऊपर शाह पालम से गुप्त बातचीत शुरू कर दी। अंगरेजों का शाह आलम से लड़ने के लिए तैयार हो जाना इतिहास लेखक मिल के शब्दों में "खुली बगावत सम्राट के खिलाफ थी। गवरनर हॉलवेल यह भी लिखता है- खुली बगावत ____ "शाह अालम ने अंगरेजों की सब शर्ते मज़र कर लेने की रजामन्दी प्रकट की। मालूम नहीं वे क्या शर्त थीं और बाद को उनका क्या हुआ। करनल केलो ने अपने पत्रों में इस बात को शिकायत की है कि मीरन ने सम्राट के विरुद्ध केलो का उस तरह साथ नहीं दिया जिस तरह केलो चाहता था। निस्सन्देह मीर जाफर और मीरन दोनों सम्राट से लड़ने के खिलाफ थे किन्तु केलों उन्हें लड़ाना चाहता था। इस पर अंगरेजों और उन दोनों में खासा मतभेद हो गया। अंगरेजों और मीरन में पहले से भी भीतर ही भीतर वैमनस्य बढ़ रहा था। ___मुर्शिदावाद की सेना के पहुंचने से पहले ही “अंगरेज़ों का पक्का हितसाधक" रामनारायन अपनी सेना लेकर शाह आलम के मुका- बले के लिए पटने से बाहर निकला। इस मामले में वह पूरी तरह

  • “ To oppose him was undisgused rebellion " Mile vol tul p 202

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