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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४२

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवश भारतीय नरेशो पर झूठे कलङ्क ठीक इसी तरह जिस सिराजुद्दौला ने अपने नाना अलीवर्दी खाँ की अन्तिम श्राज्ञा के अनुसार ताल पर बैठने के दिन से भरने की घड़ी तक कभी मदिरा को हाथ तक न लगाया था, और जिसके व्यक्तिगत चरिन्न में कोई ऐसा दोष न था, जो उस समय के १६ प्रतिशत भारतीय नरेशों या अंगरेज़ शासकों में न पाया जाता हो, उसे अंगरेज़ी पुस्तकों में परले दरजे का दुराचारी बयान किया जाता है। यही अन्याय मीर कासिम, हैदरअली, रीपू सुलमान, नन्दकुमार, लपनीबाई इत्यादि अन्य भारतीय वीरों और वीरांगनाओं के चरित्र के साथ किया गया है। इन सब बातों का अधिक हाल इस पुस्तक के अन्दर जगह जगह दिया गया है। इतिहास लेखक सर जॉन के साफ लिखता है-~- ___"xxx हम लोगों में यह एक रिवाज है कि पहले किसी देशी नरेश का राज उससे छीन लेते हैं और फिर पदच्युत नरेश पर या उस मनुष्य पर, जो उसका उत्तराधिकारी बनने वाला था, झूठे कलंक लगाकर उन्हें बदनाम करते हैं।" 'करजा चित्र जिस तरह व्यक्तियों के चरित्र के साथ किया जाता है उसी तरह घटनाओं के साथ, यहाँ तक कि अनेक पुस्तकों में भारतीय नरेशों के चित्र _* Scrafton's Reflections, as quoted a "बाङ्गलार इतिहास, नवाबी श्रामल," लेखक कालीप्रसन्न बन्योपाध्याय +". It is a custom among us . . . to take a native ruler's lingdom and then to revile the deposed ruler or bes would be successor."- Sar John Kaye's Festory of the Stpay War, vol. ul, pp 361,362.