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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४५५

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मीर का़सिम

मीर कासिम १६५ लिखाया। अचानक एक दिन रात को एक बजे मीर कासिम के एक विश्वस्त जासूस ने उसे जगाकर खबर दी-"श्राप विछौने पर पड़े क्या कर रहे हैं, आपका सेनापति गुरघिन खाँ आपको साफ़ फिरङ्गियों के हाथों में बेच रहा है ! कुछ बाहर के लोगों के साथ और मालूम होता है कि भीतर के लोगों,यानी आपके कैदियों, के साथ भी उसकी साजिश हो चुकी है।" अभी तक एलिस और उसके अंगरेज़ साथियों के साथ मोर कासिम ने बड़ी उदारता का व्यवहार किया था। इन खुले वागियों को ख़तम कर देने के बजाय वह तीन महीने से बराबर उन्हें आदर पूर्वक अपने साथ रक्खे था और खिला पिला रहा था। किन्तु 'सीअरुल-मुताख़रीन' के अनुसार जब उसने देखा कि ये सब लोग अब भी मेरे खिलाफ गहरी साजिश कर रहे हैं और बाहर से शस्त्रो वगैरह का भी गुप्त प्रबन्ध कर चुके हैं, तो उसने मजबूर होकर पटने में खोजा निगरी को, एलिस और उसके तमाम साथियों को केवल एक अंगरेज़ डॉक्टर फुलरटन को छोड़कर-जगतसेठ और उसके भाई महाराजा स्वरूपचन्द को, यानी उन सबको जो इस साजिश में शामिल थे, कत्ल करवा दिया। कहा जाता है कि खोजा निगरी इस साजिश का सरगना था। इसके बाद जब अंगरेज़ पटने की ओर बढ़े तो मीर कासिम ने ___ कर्मनासा नदी को पार कर कुछ सेना और तो खाने सहित ४ दिसम्बर सन् १७६३ को अपनी शासन का अंत सरहद से निकल कर नवाब शुजाउद्दौला के