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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५०७

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२४१
वारन हेस्टिंग्स

वारन हेस्टिंग्स २४१ सुनाई हुई । राजा नन्दकुमार ने अपने बयान में लिखा है कि इन दोनों से कई कई लाख रुपए रिशवत लेकर अन्त में वारन हेस्टिंग्स ने दोनों को निर्दोष कह कर छोड़ दिया, किन्तु उन दोनों का काफ़ी अपमान किया जा चुका था। उनके अधिकार छीन कर कम्पनी को दे दिए गए । मुर्शिदाबाद के नवाव के सालाना खर्च की रकम को वारन हेस्टिग्स ने और अधिक कम कर दिया और दोवानी तथा फ़ौजदारी दोनों की सदर अदालतों को मुर्शिदाबाद से कलकत्ते हटा लिया। इस प्रकार दो-अमली का भी अव अन्त हो चला और तीनों प्रान्तों के ऊपर कम्पनी को राज्य-सत्ता और साफ़ साफ़ चमकने लगी। मुकदमा समाप्त होने के बाद नन्दकुमार को मालूम हुश्रा कि मुझे बंगाल की नायवी का झूठा लालच केवल काम निकालने के लिए ही दिया गया था। अभी तक क्लाइव के समय की सन्धि के अनुसार कम्पनी सम्राट शाहआलम को २६ लाख रुपए वार्षिक खिराज भेजती थी। सन् १७७१ में सम्राट शाहआलम इलाहाबाद से दिल्ली चला गया। वारन हेस्टिंग्स ने गवरनर नियुक्त होते ही सम्राट को खिराज भेजना बन्द कर दिया। इलाहावाद और कड़ा का इलाका क्लाइव ने शुजा- उद्दोला से सम्राट के लिए कह कर लिया था। अव हेस्टिग्स ने यह इलाका पचास लाख रुपए के बदले में फिर शुजाउद्दौला के हाथ बेच दिया। किन्तु इलाहाबाद के किले में लेना बराबर कम्पनी ही की रहती रही। वारन हेस्टिंग्स के इन समस्त कार्यो को "सुधार" का नाम