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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५९०

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३१४
भारत में अंगरेज़ी राज

३१४ भारत में अंगरेजी राज ब्राह्मण था, जिसे हैदरअली ने ही किसी समय रियासत के अन्दर नौकर रखाया था खाँडेराव ने अब गुप्त तरीके से मराठों को श्रीरंगपट्टन पर हमला करने के लिए बुलवा भेजा। हैदरअली उस समय रियासत का प्रधान सेनापति था । इस तरह खाँडेराव ने मैसूर दरबार और हैदरअली दोनों के साथ विश्वासघात किया। हैदरअली को अपनी सेना सहित खाँडेराव और मराठों का मुकर- बला करना पड़ा । हमें इन लड़ाइयों के विस्तार में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। राजकुल के लोगों ने और खास कर नन्दीराज से पहले के 'देव' देवराज की विधवा ने, जिसका उस समय श्रीरंगपट्टन में बहुत अधिक प्रभाव था, हैदरअली को पूरी मदद की। अन्त में हैदरअली की विजय रही। प्रजा की इच्छा के अनुसार अब मैसूर के महाराजा ने विश्वासघातक खाँडेराव को अलग कर हैदरअली को 'देव' के सर्वोच्च पद पर नियुक्त कर दिया। ऊपर पा चुका है कि बहुत समय पहले से देव ही मैसूर के क्रियात्मक शासक होते थे । मैसूर के देव और को भार स वहाँ के महाराजा में करीब करीब वैसा ही 'सीरा' का सूबेदार नियुक्त किया जाना सम्बन्ध था जैसा पूना के पेशवा और शिवाजी के वंशजों में । इसके बाद भी मैसूर के राजा नाम मात्र को अपने महल के अन्दर सिंहासन पर बैठते रहे, किन्तु वास्तव में इस समय से हैदरअली मैसूर का क्रियात्मक शासक बन गया और दैव की गद्दी उसके खानदान में पैतृक हो गई। कुछ समय बाद दिल्ली सम्राट ने हैदरअली की योग्यता और उसके बल