सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३७५
लॉर्ड कॉर्नवालिस

लॉर्ड कॉर्भवालिस ३७५ जितना इलाका टीपू से विजय किया जावेगा वह सब कम्पनी, निज़ाम और मराठों में बरावर बराबर बाँट दिया जायेगा। कॉर्न- वालिस का दिया हुमा लोभ अपना काम कर गया । निजाम का चरित्र कभी भी अधिक विश्वास के योग्य न रहा था। किन्तु इस समय पेशवा दरबार का हैदर के बेटे के खिलाफ विदेशियों के हाथों में खेल जाना निस्सन्देह अत्यन्त अफसोसनाक था। टीयू के विरुद्ध अंगरेजों, मराठों और निजाम में सन्धि हो गई । इस सन्धि के बारे में उस समय के प्रसिद्ध अंगरेज नीतिज्ञ फॉक्ल ने कहा था कि वह वास्तव में-~“एक न्याय्य नरेश को मिटा देने के उद्देश से उकैतों की साजिश थी।"* इंगलिस्तान के मन्त्रियों ने समाचार पाते ही फौरन कुछ गोरी फौज और पाँच लाख पाउण्ड नकद बतौर कर्ज कॉर्नवालिस की मदद के लिए इंगलिस्तान से रवाना किए। तमाम तैयारी पूरी हो गई, कॉर्नवालिस के लिए अब केवल कोई बहाना ढूंढना बाको था। कहते हैं कि टीयू के साथ युद्ध भिधानकर के राजा और टीपू में कुछ झगड़ा का बहाना चला आता था। त्रिवानकुर के राजा को यह कह कर भड़काया गया कि टीपू तुम पर हमला करने का इरादा कर रहा है। उस समय के तमाम पत्रों और उल्लेखों से साबित है कि टीपू का त्रिवानकुर पर हमला करने का कतई कोई इरादा न ___ * " A plundering contrderacy tor the purpose of extirpating a lastu prince Far