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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६५८

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भारत में अंगरेज़ी राज

३७ भारत में अगरेजी राज कहाँ तक प्रभाव था । जो हो, पेशवा दरबार का उस समय अंगरेजों के हाथों में खेल कर उन्हें उस घोर अन्याय में मदद देना न केवल टीपू, बल्कि तमाम भारतीय राजशक्तियों के भविष्य के लिए अत्यन्त अशुभ सूचक था। इस सब के अलावा हैदर की अदूरदर्शिता का नतीजा भी इस समय टीपू को भोगना पड़ा। टीए के तमाम यूरोपियन नौकर यानी उसकी सेना के यूरोपियन अफसर और सिपाही ऐन मौके पर शत्रु से जा मिले । शॉर्नवालिस ने गुप्त पत्रव्यवहार द्वारा इन तमाम लोगों को, जिन्हें हैदर ने नौकर रक्खा था, धन का लोभ देकर अपनी ओर कर लिया। पाँच लाख पाउण्ड नकद कॉर्नवालिस को इस तरह के कामों के लिए विलायत से कर्ज मिल चुके थे । इतिहास लेखक थॉर्नटन लिखता है:- "टोपू सुलतान के यूरोपियन नौकर जिस तरह पहले अपनी विद्या और अपने कौशल को छीपू को रक्षा करने के लिए काम में लाते थे उसी तरह अब वे अपनी उन्हीं ताकतों को टीपू के नाश के लिए काम में लाने को हर तरह तैयार हो गए 18 मीर हुसेनअली खाँ किरमानी लिखता है कि टीपू के कुछ अमीरों और सरदारों को भी अंगरेजों ने अपनी टीपू की सेना में में ओर फोड़ लिया था। टीपू जो इस युद्ध के विश्वासघातक लिए पहले से तैयार न था, एक ओर अंगरेजों, 2 Tipe's European cervants were now quite as ready to exercise their skilledkaowledge for has districtions hey luad prev.ously heen assiduous an using them for his defence"--History of ritesh intra, br Thorn.ton