सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१६
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज अपनी सेना के विषय में जो जो शत अंगरेजो ने पेश की, सब मान ली। ____ सर जॉन शोर ने अब रेमों को निज़ाम की सेना से निकलवा दिया और दो अंगरेज अफसर उस लेना को तालीम देने के लिए हैदराबाद भेजे। रेमौं होशियार और बफादार था, ये दोनों अंगरेज़ अयोग्य निकले, फिर भी निज़ाम को सर जॉन शोर की इच्छा पूरी करनी पड़ी। इसके बाद जिन्दगी भर निज़ाम अंगरेज़ों का विनीत और आज्ञाकारी सेवक बना रहा और कम्पनी को अपने राज के कायम करने में निजाम के कुल से हमेशा खूब मदद मिलती रही। दक्खिन की एक दूसरी मुसलिम रियासत, जिससे सर जॉन शोर को वास्ता पड़ा, करनाटक की रियासत नवाब करनाटक थी। करनाटक ही के नवाब को अरकार का के नाम जबरदस्ती नवाब भी कहते थे। एक पिछले अध्याय में श्रा चुका है कि करनाटक के नवाब मोहम्मदअली से अंगरेजों को कितना फायदा पहुँचता था, उससे किस प्रकार तरह तरह से धन वसूल किया जाता था और किस प्रकार कम्पनी के नोकरों की मांगों को पूरा करने के लिए वह कुछ अंगरेज़ व्यापारियों ही के कजों में बेतरह दबा हुआ था। अरकाट के नवाब के कों का हाल इङ्गलिस्तान के मस्त्रियों और वहाँ की पालिमेण्ट के कानों तक भी पहुँच चुका था। इन कों में कितने ही कर्जे साफ़ ज़बरदस्ती और बेईमानी के थे और सूद दर सूद, बट्टे इत्यादि के हिसाब से बराबर बढ़ते चले जाते