सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४२१
सर जॉन शोर

सर जॉन शोर TE थोड़े ही दिनों के बाद सर जॉन शोर को पता चला (१) कि आसफुद्दौला का एक भाई सश्रादतनली, जो ५ उस समय बनारस में रहता था, उसके बेटे का नीलाम - वज़ीरअली की निस्बत अवध की गद्दी का ज्यादा हकदार है । मेजर बर्ड, जो कुछ दिनों बाद लखन - असिस्टेण्ट रेज़िडेण्ट था, लिखता है- "सर जॉन शोर यह देख कर कि पिछले वज़ीर के साथ ज्यादा अच्छा सौदा किया जा सकता है, गनारस पहुँचा । वहाँ पहुँच कर उसने सादतअली के सामने यह तजवीज़ पेश की कि कम्पनी की मदद से आप वज़ीर अली की गद्दी से उतार दीजिये, इस साफ शर्त पर कि आप साढ़े पचपन लाख सालाना की रकम को खून बढ़ा दें और उसके अलावा कम्पनी की सहायता के बदले में हमें और धन व सम्पत्ति दें। इस लात और निलंज शर्त पर नवाबी का इच्छुक खुशी से राजी हो गया। लखनऊ पहुँच कर xxx वज़ीरश्रलो को उतार दिया गया और २१ जनवरी सन् १७६८ को उसकी जगह समादत्तअली के नवाब बनाए जाने का एलान कर दिया गया ।"*

  • " Seeing that a better barzasti could be made with a brother of the

deceased Wazur, Sir John Shore repaired to Berares, and prunosen to the latter, who was named Saadat All, to dethroe Warr .ili, offering the Support of the Company on the intelligible condition that tite - hidv-should be largely increased, and that ther support snotid be paid tor otherriapan mo.sey and land To tasss.tpulation, bold and hare-faced the aspirato the Princedonm cheerfully consented, and, after a preliminary prorisat Lucknow, termed in the ' Parliamentary keturn of Trathe.' 'a full instist:- gration,' and purporting to be an enquiry into the spurnousness of Jam