सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९४
 

हुक्म की पाबन्दी में ढील हुई ती बीजापुर की ईंट से ईंट बजा दूँगा। बीजापुर के राजा ने डर कर शाहजादे पर पहरे बैठा दिये। शाहजादे के साथ उसके चारों पुत्र, तीनों लड़कियाँ और बेगम थीं। औरङ्गजेब अभी बच्चा था--पर उसे खुर्रम सफेद साँप कहा करता था--किसी साधु ने उसे कहा था कि यह तुम्हारे राज्य को नष्ट करने वाला होगा। खुर्रम ने कई बार मार डालने का भी विचार किया, पर रोशनआरा ने सदैव उसकी रक्षा की। खुर्रम को यहाँ उसके श्वसुर आसफ़खाँ की चिट्ठी मिली कि किसी तरह भाग कर बुरहानपुर के हाकिम महाबत खाँ से मिल जाओ और उसे ले यहाँ पहुँच जाओ तो राज तुम्हारा है। यह सुन युक्ति से शाहजादा यहाँ से भाग निकला। आगरे पहुँचने पर आसफ़खाँ बारह हजार सवार ले उससे जा मिला। खुर्रम ने धूम-धाम से नगर में प्रवेश किया। और अनायास ही तख्त पर अधिकार कर लिया और शाहजहाँ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

शाहजहाँ

इस बादशाह के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य का वैभव मध्याह्न के सूर्य की भाँति शिखर पर पहुँच चुका था। गद्दी पर बैठते ही उसने सुलतान ब्लाकी की तलाश करवाई। पर वह घर से भाग गया। उसके दो पुत्र लाहौर में रहते थे। बादशाह ने हुक्म दिया, उन्हें मकान में बन्द कर दर्वाजों में दीवार चुन दी जाय। जब उनके पास यह हुक्म पहुँचा, वे जहाँगीर के दीवानेख़ास के कमरे में बैठे पढ़ रहे थे। उन्हें उसी दालान में तत्काल चुन दिया गया। इसके बाद उसने हुगली के पुर्तगीजों पर सेना भेजी। वे लोग प्रजा पर बड़ा अत्याचार कर रहे थे। जब बादशाह पितर से विद्रोही होकर भागा फिरता था, तब उन्होंने बादशाह की बेगम मुमताज महल की दो बाँदियों को पकड़ लिया था। पाँच हजार पुर्तगीज पकड़ कर लाये गये। पर उनके आगरे पहुँचते-पहुँचते मुमताज का स्वर्गवास हो गया। कुछ कैदी मारे गये। कुछ गुलाम के तौर पर बेच दिये गये। उनकी स्त्रियों को अमीरों में बाँट दिया गया--कुछ को हरम में रख लिया गया।

मन्त्री सादुल्लाखाँ के प्रबन्ध से आय बढ़ गई थी। देश में शान्ति