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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/११६

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पास पिता के दिये हुये बहुमूल्य जवाहरात थे। यह दारा को चाहती थी और उसे सदा इस बात की चिन्ता रहती थी कि दरबार के सब उमरा उसके विपक्षियों से न मिल जायें।

इसने इस बात की बड़ी कोशिश की कि राजगद्दी का मालिक दारा हो। क्योंकि वह विवाह की बड़ी इच्छा रखती थी और दारा ने प्रतिज्ञा की थी कि सिंहासन पर बैठते ही तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा। इस बात को मन में रखते हुए उसने अपनी सारी चतुराई बादशाह को प्रसन्न करने में लगा दी। वह सदा बड़े प्रेम और मन से शाहजहाँ की सेवा करती थी। और यही कारण था कि साधारण पुरुष कहते थे कि बादशाह का इसके साथ अनुचित सम्बन्ध है। दारा चाहता था और उसने बादशाह से विनोद भी किया कि शहज़ादी का विवाह नज़ाबतखाँ नामी सिपहसालार से कर दिया जाये, जो बलख़ के शाही ख़ानदान से सम्बन्ध रखता था। वह पुरुष वीर और सुन्दर था। परन्तु शाहजहाँ के साले शाईस्ताखाँ ने इस समाचार को जानकर शाहजहाँ को समझाया कि ऐसा न करना। क्योंकि यदि उसकी शादी शहजादी से हो गई तो उसे अवश्य ही शहजादों की पदवी देनी होगी। इसके अतिरिक्त नज़ाबतखाँ शाहे बलख़ का सम्बन्धी है। जिसके साथ कभी न कभी आपको लड़ना पड़ेगा, और दूसरे अकबर का भी यह फ़रमान है कि लड़कियों की शादी नहीं होनी चाहिए। यही कारण था कि यद्यपि शाहजहाँ की इच्छा थी तो भी उसने अपनी लड़की की शादी नहीं की।

यह शहजादी गाने-बजाने और नाच-रंग में बड़ी चतुर थी। एक दिन नाच में लीन हो रही थी कि नाचने वाली की एक बारीक पोशाक में जो इतर में बसी हुई थी आग लग गई। शहज़ादी इसे बहुत प्रेम करती थी इसलिये इसे बचाने दौड़ी और आग बुझाते-बुझाते छाती जला बैठी, इसलिये दरबार में चर्चा हुई। परन्तु शहज़ादी को बड़ा दुःख हुआ जब उसे पता मिला कि वह स्त्री जिसके लिये इसने इतना कष्ट उठाया था बच नहीं सकी। इन खेल-तमाशों के अतिरिक्त शाहज़ादी अंगूरी शराब को बहुत चाहती थी जो फ़ारिस, काश्मीर और काबुल से मँगाई जाती थी। परन्तु इसके पीने की अच्छी शराब वह थी, जो उसके अपने घर में बनाई जाती थी। यह शराब बड़ी स्वादिष्ट होती थी और अंगूर में गुलाब और बहुत से