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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/४८

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क्रूरतापूर्वक लिया गया। शियाओं का कहना था कि ख़लीफ़ा का चुनाव हो। पर सुन्नी कहते थे---नहीं, ख़लीफ़ा अपना उत्तराधिकारी नामज़द कर सकता है यह मतभेद अभी तक चला आता है।

जब ख़िलाफ़त की बागडोर इनके हाथ से जाती रही तब अरबों का आधिपत्य भी नष्ट हो गया। कुछ दिन फारित वाले ख़लीफ़ा रहे पीछे तुर्क ने यह स्थान लिया।

सन् १२६१ से १५१७ तक ख़िलाफ़त का तीसरा काल आता है। इस काल में ख़िलाफ़त का प्रादेशिक अधिकार बहुत कुछ जाता रहा। इस्लाम धर्म की राज्य सत्ता इन दिनों मिस्र के सुलतान मामलूक और कुछ अन्य मुसलमान बादशाहों के हाथ में रही। ख़लीफ़ाओं का एक उत्तराधिकारी अहमद ताहिर सीरिया में रहता था। मिस्र के बीबर वंश के बादशाह ने उसे अपने यहाँ बुलाया और उसने एक खुतवा पढ़वाया। ख़लीफ़ा ने उसे सम्राट की पदवी दी और इस्लाम के प्रचारार्थ निरन्तर लड़ते रहने की सम्मति दी। यह ख़लीफ़ा सन् १२६२ में मंगोलों से लड़ते हुए काम आया। इसके बाद बीबरों ने उसी के एक वंशज को ख़लीफ़ा बना लिया।

सन् १५१७ में तुर्की के प्रथम सलीम ने मिस्र पर धावा किया और मामलूक सुलतान को पराजित करके उस पर अपना अधिकार कर लिया। उसी समय उसने ख़लीफ़ाओं के अन्तिम वंशधर से ख़लीफ़ा की पदवी प्राप्त की, तब से लेकर अब तक उसी वंश के बादशाह ख़लीफ़ा होते आये हैं। यह समय की बलिहारी है---एक समय था जब तुर्क ने इस्लामी सभ्यता को प्रबल टक्कर से छिन्न-भिन्न कर दिया था। सन् १२६८ में एक तुर्क बादशाह ने बग़दाद पर चढ़ाई करके उसे इस भयानक रीति से लूटा कि फिर आज तक इस्लाम का राजनैतिक या धार्मिक क्षेत्र वह नहीं बन सका। इस तुर्क आक्रमणकारी का नाम हलाकू था। उसके विषय में लिखा है---"वह आया, आकर उसने नाश किया। आग लगाई, क़त्ल किया और सब कुछ लूटकर चलता बना।" परन्तु जब से हलाकू के वंशजों ने इस्लाम धर्म ग्रहण किया तब से उन्होंने इस्लाम धर्म की रक्षा और प्रसार करने में कुछ उठा नहीं रक्खा।

सुल्तान सलीम अनेक कारणों से मुस्लिम धर्म का संरक्षक कहाया। अली के बाबा मुहम्मद ने अन्तिम रूप से पूर्वीय रोम के साम्राज्य को नष्ट