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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/३४

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भाव-विलास

 

३—रोमाञ्च
दोहा

आलिंगन, भय, हर्ष, अरु, सीत कोप तें जानु।
उठत अंग में रोम जे, ते रोमांच बखानु॥

शब्दार्थ—कोप—क्रोध।

भावार्थ—आलिंगन, भय, हर्ष, और शीतादि के कारण शरीर के रोएं जब खड़े हो जाते हैं तब उन्हें रोमाञ्च कहते हैं।

उदाहरण

कूल चली जल केलि के, कामिनि, भावते के सँग भाति भली सी।
भींजे दुकूल में देह लसै, कविदेव जू चम्पक चारु दली सी॥
बारि के बूद चुवैं चिलकैं, अलकै छबि की छलकै उछली सी।
अञ्चल झीन झकैं झलकैं, पुलकैं कुच कन्द कदम्ब कली सी॥

शब्दार्थ—कूल—किनारे। जल केलिके—जल-क्रीड़ा करके। कामिनि—स्त्री। भवते—पति, प्रेमी। भात—शोभायमान। भींजे—भीगे हुए। दुकूल—कपड़े लसै—शोभायमान। चम्पक—चम्पा पुष्प। चारु—सुन्दर। दली सी—कली के समान। झलकैं—दिखायी देते हैं। पुलकैं—पुलकायमान हो।

४—वेपथु
दोहा

प्रिय-आलिंगन हर्ष भय, सीत कोप तें जानु।
अंग कम्प प्रस्फुरन बिनु, वेपथु ताहि बखानु॥