सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(२)

उनकी प्रखर प्रतिभा का पक्का प्रमाण है। परन्तु इतने प्रतिभा-सम्पन्न होने पर भी, हिन्दी के अन्य कवियों की तरह, इन्हें किसी राजा अथवा महाराजा द्वारा विशेष सम्मान नहीं मिला। इन्होंने स्वयं लिखा है कि

आजु लगि केते नर-नाहन की 'नाहीं' सुनि,
नेह सो निहारि हारि बदन निहारतो।

हाँ, भोगीलाल नामक एक गुणज्ञ राजा ने इनका अवश्य सम्मान किया। इन्होंने भी अपना 'रसविलास' नामक ग्रन्थ इन्हीं गुणज्ञ राजा के लिए बनाया तथा अन्य कई स्थलों पर भी इनकी बड़ी प्रशंसा की है।

पर इन गुणज्ञ राजा के यहाँ भी ये बहुत दिनों तक नहीं रहे। यह इनके ग्रन्थों से विदित होता है। इसके दो कारण हो सकते हैं। या तो भोगीलाल का देहान्त हो गया हो अथवा ये ही किसी कारणवश वहाँ से चले आए हो।

जो हो, देवजी प्रतिभासम्पन्न महाकवि थे, इसमें कोई सन्देह नहीं। इनके बनाए हुए ५२ ग्रन्थ कहे जाते हैं। कोई कोई इन्हे ७२ ग्रन्थों का रचयिता भी मानते हैं। इनके बनाये हुए दो एक ग्रन्थ खोज में मिले हैं और अन्य ग्रन्थों के मिलने की भी आशा है। अतः अभी निश्चय-पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इन्होंने कितने ग्रन्थ लिखे। अब तक इनके लिखे हुए २५ ग्रन्थों का पता चल चुका है:—

१—भाव-विलास २-—अष्टयाम ३—भवानी-विलास ४—सुंदरी-सिंदूर ५—सुजान-विनोद ६—प्रेमतरंग ७—रागरत्नाकर ८—कुशल-विलास ९—देवचरित्र १०—प्रेमचंद्रिका ११—जातिविलास १२—रसविलास १३—काव्यरसायन १४—सुखसागरतरंग १५—देवमाया-प्रपंच-नाटक १६—वृक्षविलास १७—पावसविलास १८—देवशतक १९—प्रेमदर्शन २०—रसानंदलहरी २१—प्रेमदीपिका २२—सुमिलविनोद २३—रधिका-विलास २४—नखशिख २५—दुर्गाष्टक।